मानव जीवन मात्र जीवन ही नहीं यह एक कठिन परीक्षा है
मानव जीवन के मूल्यों को समझाना व् आचरण में लाना सहज नहीं है
व्यावहारिक व् सामाजिक व्यथा सर्वदा जीव का पीछा करती है
कठिन काल में स्वयं की परछाई भी जीव को भयभीत करती है
समाज में रहते हुए भी जीव बहुत अवस्थाओं में स्वयं को अकेला पाता है
यधपि जीव एक घटना क्रम में ही अपना जीवन जीने को विवश होता है तब पर भी आशा निराशा उसे घेरे रहती है
अनिश्चितता का ताप भयावय होता है और जीव विवश होकर इसे वहन करने को प्रयासरत रहता है,
यहाँ ज्ञान सहायक तो है पर मानव की उस ज्ञान पर पहुंच सहज नहीं
आत्मा के ज्ञान व् सतगुरु की कृपा से कुछ मदद संभव है पर निष्पाप, अनुभवी व् तपस्वी गुरु ही यहाँ सहायक हो सकता है
सभी को प्रभु की कृपा प्राप्त हो
धन्यवाद