रे मन
जो भी वस्तु या परिस्तिथि तुझे परमात्मा से अलग करे उसे पूर्णता नकार दे
जो भी सोच मन को दूषित करे उसे तभी त्याग दे
जो कार्य भागवत तत्व से दूर करे उससे स्वयं को बचा
जो स्तिथि तुझे भागवत प्रेम से दूर ले जाये उससे सचेत रहना
भागवत प्रेम व् शाश्वत जीवन एक दूसरे के पूरक है
भीतर के सुख को सजो के रखना यह परमात्मा के सामीप्य का कारण व् कारक हो सकता है
इस जीवन यात्रा में दुःख व् कठिनाई तो अवश्य ही आएगी पर स्वयं को स्वयं ही संभालना
परमातम तत्व की प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर रहना
श्री परमात्मा की कृपा सभी को प्राप्त हो
आभार धन्यवाद