Jai Sri Ganesha,
Vow of Krishna is very simple for man,
Fix your mind on me, rest your thoughts on me,
And in me alone you will live hereafter,
And there is nothing to doubt about,
May Lord Bless all,
Thanks, please
Ocean of compassion lord Shiva,” Obeisance to you, o lord Shiva! Please accept my homage with all due respect, Obeisance to the spouse of lord,holy mother Gauri.”_-_ॐ त्रियुम्ब्कम यजामहे सुगंधिम पुस्तिवर्धनम उर्वारूकिमव बन्धानानाम्म्रित्युमुक्षायी माम्रतात _-_ ॐ रामाया राम भद्राय राम चन्द्राया मानसा रघुनाथाया नाथाय सिताये पतिये नम_ चरित सिन्धु गिरिजा रमन वेड न पवाही पारू_श्री श्री मात महा काली नमो नम_ शिवोहम_शिवोहम_शिवोहम
ॐ त्रियुम्ब्कम यजामहे सुगंधिम पुस्तिवर्धनम उर्वारूकिमव बन्धानानाम्म्रित्युमुक्षायी माम्रतात
भगवान शंकर की उपासना में रुद्राक्ष का अत्यन्त महत्व है इसकी उत्पत्ति महादेव जी के अश्रुओं से हुई
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे - सहस्त्र नाम तुतुल्यम राम नाम वरानने - राम राम शुब रटी सब खान आनंद धाम - सहस्त्र नाम के तुल्य है राम नाम शुभ नाम
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा शमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमो नम_
भक्त मेरे है मुकुट मणि और में भक्तो का दास भवानी
सेवा भावः परम फल दाई
भक्ति भावः परम पद दाई
Truth is the essence of life.
Truth is the essence of soul
Truth is the essence of supreme.
Mundane world is the very mode of illusion nothing beyond a dream to understand.
It needs to be courageous in life to carry on with and no place for getting dishearten in life.
One needs to Practice to be happy at heart in life, even in the toughest span of it.
Adore the lotus feet of lord while carry on with in life as a must factor.
Please do not hurt/pain any one if possible try to help other need it badly.
Respecting every creature of supreme is as good as any thing being a human.
Be brave to face the false of illusion put self to prove truth their in.
Please try to maintain the optimum pace of life on the verge of character as human.Discard the laziness in life.
Glory of divine mother_Sri Sri Maa Gauri
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम
या देवी सर्वभूतेषु बुद्दिरुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम
या देवी सर्वभूतेषु निन्द्रारुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम
या देवी सर्वभूतेषु शुधारुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम
या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम
या देवी सर्वभूतेषु तृष्णारुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम
या देवी सर्वभूतेषु लज्जारुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम
या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धारुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम
या देवी सर्वभूतेषु कान्तिरुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम
या देवी सर्वभूतेषु स्मृतिरुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम
या देवी सर्वभूतेषु दयारुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम
या देवी सर्वभूतेषु त्रुष्टिरुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम
या देवी सर्वभूतेषु मातारुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम
हिमाचल्सुतानाथ्संस्तुतेय परमेश्वेरी
रूपं देहि जयम देहि यशो देहि द्विषो जहि
ॐ श्री श्री मात महा काली नमो नम
ॐ श्री श्री मात महा काली नमो नम
ॐ श्री श्री मात महा काली नमो नम
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्माङ्गरागाय महेश्वराय
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय
तस्मै न काराय नम: शिवाय
मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय
नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय
तस्मै म काराय नम: शिवाय
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द-
सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय
तस्मै शि काराय नम: शिवाय
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य-
मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय
तस्मै व काराय नम: शिवाय
यक्षस्वरूपाय जटाधराय
पिनाकहस्ताय सनातनाय
दिव्याय देवाय दिगम्बराय
तस्मै य काराय नम: शिवाय
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं- विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं- चिदाकाशमाकाशवासं भजे5हं
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं- गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं
करालं महाकाल कालं कृपालं- गुणागार संसारपारं नतो5हं
तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं -मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा- लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं - प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं - प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं - अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्
त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं- भजे5हं भवानीपतिं भावगम्यं
कलातीत कल्याण कल्पांतकारी- सदासज्जनानन्ददाता पुरारी
चिदानन्द संदोह मोहापहारी- प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी
न यावद् उमानाथ पादारविंदं- भजंतीह लोके परे वा नराणां
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं- प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं
न जानामि योगं जपं नैव पूजां- नतो5हं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं
जराजन्म दु:खौघ तातप्यमानं- प्रभो पाहि आपन्न्मामीश शंभो
sri sri kashi vishvanath___
पूरी काशी ही ज्योति स्वरूप है
काशी नाम का अर्थ भी यही है जहां ब्रह्म प्रकाशित हो
वरुणा और असि नामक नदियों के बीच पांच कोस में बसी होने के कारण इसे वाराणसी भी कहते हैं
काशी मुक्ति देती है, मोक्ष देती हैं।
जीव को तत्वज्ञान देती है और उसके सामने अपना ब्रह्मस्वरूप प्रकाशित होता है
मुक्तिदायिनीकाशी की यात्रा बाबा विश्वनाथ की कृपा से ही प्राप्त होता है
काशी में कहीं पर भी मृत्यु के समय भगवान विश्वेश्वर (विश्वनाथजी) प्राणियों के दाहिने कान में तारक मन्त्र का उपदेश देते हैं तारकमन्त्रसुनकर जीव भव-बन्धन से मुक्त हो जाता है
त्रिपुरारि भगवान विश्वनाथ की राजधानी वह काशी संपूर्ण जगत् की रक्षा करे
puja_vidhi {mode of prayer}
ध्यान_ध्यानार्थेपुष्पं समर्पयामि_ध्यान करके परमात्मा के चरणों में अक्षत समर्पित करें
आसन-आसनानार्थेपुष्पाणिसमर्पयामि_आसन के लिए फूल चढाएं-
पाद्य -पादयो:पाद्यंसमर्पयामि
जल चढाएं
अर्घ्य_ अर्घ्यसमर्पित करें
आचमन-स्नानीयं जलंसमर्पयामि_स्नानान्ते आचमनीयंजलंचसमर्पयामि।स्नानीयऔर आचमनीय जल चढाएं
पय:स्नान-
ॐपय: _पय: स्नानंसमर्पयामि।पय: स्नानान्तेआचमनीयं
दूध से स्नान कराएं, पुन:शुद्ध जल से स्नान कराएं और आचमन के लिए जल चढाएं
दधिस्नान-दधिस्नानं समर्पयामि,से स्नान कराने के बाद शुद्ध जल से स्नान कराएं तथा आचमन के लिए जल समर्पित करें
घृत स्नान-
घृतस्नानं समर्पयामि,घृत से स्नान कराकर पुन:आचमन के लिए जल चढाएं
मधु स्नान-
मधुस्नानंसमर्पयामि, मधु से स्नान कराकर आचमन के लिए जल समर्पित करें
शर्करा स्नान-
शर्करास्नानं समर्पयामि, शर्करा से स्नान कराकर आचमन के लिए जल चढाएं
पञ्चमृतस्नान
पञ्चमृतस्नानं समर्पयामि, शुद्धोदकस्नानंसमर्पयामि, पञ्चमृत से स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान कराएं तथा आचमन के लिए जल चढाएं
गन्धोदकस्नान-
गन्धोदकस्नानंसमर्पयामि, गन्धोदकसे स्नान कराकर आचमन के लिए जल चढाएं
शुद्धोदकस्नान-
शुद्धोदकस्नानंसमर्पयामि-शुद्ध जल से स्नान कराएं तथा आचमन के लिए जल समर्पित करें
वस्त्र-
उपवस्त्र-
उपवस्त्रंसमर्पयामि, उपवस्त्रचढाएं तथा आचमन के लिए जल समर्पित करें
यज्ञोपवीत-
यज्ञोपवीतं समर्पयामि।यज्ञोपवीत समर्पित करें
गंध-अर्पण
गन्धानुलेपनंसमर्पयामि-चंदनउपलेपित करें
सुगंधित द्रव्य-
सुगंधित द्रव्यंसमर्पयामि।सुगंधित द्रव्य चढाएं
अक्षत-
अक्षतान्समर्पयामि_अक्षत चढाएं
पुष्पमाला-
पुष्पमालां समर्पयामि पुष्पमाला चढाएं
बिल्व पत्र-
बिल्वपत्राणि समर्पयामि_बिल्व पत्र समर्पित करें
नाना परिमलद्रव्य-
नानापरिमल द्रव्याणिसमर्पयामि
विविध परिमल द्रव्य चढाएं
धूप-
धूपंमाघ्रापयाम -धूप अर्पित करें
दीप-दीपं दर्शयामि
दीप दिखलाएं और हाथ धो लें
नैवेद्य-
नैवेद्यं निवेदायामि-नैवेद्यान्तेध्यानम्
नैवेद्य निवेदित करे, तदनंतर भगवान का ध्यान करके आचमन के लिए जल चढाएं
ऋतुफल-
ऋतुफलानिसमर्पयामि
ऋतुफलसमर्पित करें
ताम्बूल-
ताम्बूलपत्रंसमर्पयामि।पान और सुपारी चढाएं
दक्षिणा-
दक्षिणां समर्पयामि_द्रव्य दक्षिणा समर्पित करें
आरती-
कपूर से आरती करें।
परमात्मा सभी को एक दृष्टि से देखते है
जो परमात्मा के दरबार में एक बार चला जाता है
वह खाली हाथ नहीं लौटता है
मनुष्य को दो बातों को हमेशा याद रखना चाहिए एक मृत्यु और दूसरे श्री भगवान
शिव की महिमा अनंत है
उनके रूप, रंग और गुण अनन्य हैं
समस्त सृष्टि शिवमयहै
सृष्टि से पूर्व शिव - सृष्टि के बाद केवल शिव ही शेष रहते हैं
देहि शिव बर मोहि अही शुब करमन ते कबहू न टरो
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्-उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्