Sat Guru

Sat Guru
Bhagwan Shiv

Thursday, March 11, 2021

यात्रा

 यात्रा

ब्रह्म से बिछड़ने  के बाद दुःख संताप व् पीड़ा ही जीव का भाग्य बन जता है वह परिवर्तन के निमित हो जाता है गति उसे तरसा देती है वह शांति चाहता है स्थिरता चाहता है पर अहंकार के वेग में बहे चला जाता है
आकाश  से वायु
वायु से मेघ
मेघ से जल
जल शस्य
शस्य से शुक्र
शुक्र  से गर्भ
गर्भ से योनी
योनी के भोग
भोग से कर्म
कर्म से बंधन
और पुन वही चक्र व्यूह, पर मनुष्य योनी वह पड़ाव है जहा पहुच कर जीव इस चक्र व्यूह का भेदन कर पुन ब्रह्मा को पा सकता है   जहा स्थिरता शांति व् परमानन्द है


विशुद्ध ज्ञान ही वह अमृत है जो शिव प्राप्ति का परम साधन है केवलं का प्राप्ति कारक मात्र  विशुद्ध ज्ञान और परिपूर्ण समर्पण है